लोदी वंश का इतिहास

नमस्कार दोस्तों आज के इस महत्वपूर्ण आर्टिकल में हम आपसे बात करने वाले हे लोदी वंश के बारे में, तो चलिए दोस्तों लोदी वंश के बारे में आगे की जानकारी प्राप्त करते है। भारत देश का प्रथम वंश लोदी वंश था, और दुसरे शब्दों में इसे अफगान वंश भी कहते है। यह वंश का रहेनाक विस्तार सुलेमान पर्वत की पहाड़ी वाले क्षेत्रो में था। इस वंशह ने भारत देश में दिल्ली की सल्तनत पर उसके अंतिम चरण में शासन किया था। पहाड़ी निवासी जो पाकिस्तान पूर्व में मुल्तान और पेशावर के बीच सुलेमान पर्वत क्षेत्र में और पश्चिम में गजनी तक फैले हुए थे और वह वे अज्ञात और गरीबी की स्थिति थी। वहां के लोग पशुपालन पालते थे और उनसे ही अपनी जीविका को चलाते थे, या फिर अपने आस पास के पड़ोसी गाव या क्षेत्रो में जाके लुट पाट करते थे। उनके यह लडाकु स्वभाव से ‘महमद गजनवी’ का ध्यान अपनी और आकर्षित किया, अलउत्बी के अनुसार उन्हें अपना उत्तरगामी बना लिया था।

भारत के इल्बरी शासकों ने अफगान सैन्य का उपयोग अपनी चौकियों को स्ट्रोंग करने और अपने सारे विरोधी पहाड़ी क्षेत्रो पर कब्ज़ा जमाने के लिए किया था। यह परिस्थति में मुहम्मद-बिन-तुगलक के शासन में आई थी। एक अफगान को सूबेदार बनाया गया था, और वही दौलताबाद में कुछ दिनों के लिए वह सुल्तान भी बना। फिरोज-तुगलक के शासनकाल के दौरान, अफगानों का प्रभाव बढ़ने लगा और मलिक वीर नामक एक अफगान को बिहार का सूबेदार नियुक्त किया गया। दौलत खान शायद दिल्ली में सर्वोच्च शक्ति प्राप्त करने वाले पहले अफगान थे, फिर भी उन्होंने खुद को सुल्तान नहीं कहा था। सैयदों के शासनकाल में कई प्रमुख राजा अफगानों के खिलाफ थे। उस समय दिल्ली के बहलोल लोदी के सुल्तान शाही पर अफगानों का काफी प्रभुत्व था।

लोदी वंश के शासन (Rule of The Lodi Dynasty)

  • बहलोल लोदी का शासन समय – ई. 1451 से 1489 तक था।
  • सिकंदर लोदी का शासन समय – ई. 1489 से 1517 तक था।
  • इब्राहीम लोदी का शासन समय – ई. 1517 से 1526 तक था।

बहलोल लोदी – ई. 1451 – 1489 (Bahlol Lodi – 1451 – 1489)

अफगानों की शाहूखेल शाखा से संबंधित बहलोल लोदी था। इसने बहलोली नामक अपना हुकुम चलाया था और उस समय वजीर के पद को हटा दिया गया था। हुसैनशाह शर्की 1484 ई. में जौनपुर पर शासन करता था और बहलोली ने हुसैनशाह को युद्ध में पराजित करके उसके पुत्र बरबकशाह को जौनपुर के विरासत की गद्दी का शासक बना दिया था। बिहार के उत्तरी भाग में दरभंगा में किरतसिंह का शासन था बादमे बरबकशाह ने किरतसिंह को पराजित किया।

मानसिह का शासन ग्वालियर पर था, बरबकशाह ने वहा पर भी आक्रमण किया लेकिन वह वो जित नहीं पाया। बहलोल लोदी ने तारिख-ए-दाउदी के अनुसार अफगान के लोगो की जातीय समानता की भावना का सम्मान किया था। तारीख-ए-दाउदी अपने अफगान के रहिज़ जादे को मसनद-ए-आली कहकर बुलाता था। तारीख-ए-दाउदी अपने जैसे अमीर लोगो के साथ वह सिंहासन पर नहीं बैठता था बल्कि वह उसके साथ कालीन पर बैठता था, और उसके शासन में केसी भी लुट होती थी तो उसका सामान बराबर हिस्सों में बंटवारा करता था।

देखा जाये तो बहलोल लोदी खुद के घार्मिक रूप से बिलकुल कट्टर नहीं था। उसने नाही कभी भेदभाव किया था बल्कि उसने अनेक हिन्दूओ को अपने प्रशासन में शामिल किया था। उसके साथ शामिल किये गये प्रशासन के नाम – रायकरनसिंह, रायप्रतापसिंह, नरसिंह, त्रिलोकचंद जैसे थे।

सिकंदर लोदी – ई. 1489 – 1517 (Sikandar Lodi – 1489 – 1517)

सिकंदर लोदी बहलोल लोदी का छोटा पुत्र था। सिकंदर लोदी का असली नाम निजाम था। अफगान के अमीर लोग और गरीब लोग में एक बात प्रख्यात थी जो जातीय समानता और जाती का विभाजन सिकंदर लोदी ने इस परंपरा को ख़त्म कर दिया था। सिकंदर लोदी के बड़े भाई बरबक थे उनसे सिकंदर ने जौनपुर को जीता और उसे अपने सल्तनत से मिला दिया।

सिकंदर लोदी ने 1494 ई. तक संपूर्ण बिहार को जित लिया था और अपने साम्राज्य में शामिल कर लिया था। राजपूतो के पास पूर्वी राजस्थान था पर सिकंदर लोदी ने उस पर भी आक्रमण किया और धौलपुर, चंदेरी, नागौर, उत्तरिरी, नरवर, मंदरेल, जैसे को जित लिया था। सिकंदर लोदी ने इस राजपूत राज्यों पर अपना नियंत्रण स्थापित करने के लिये 1504 ई. में आगरा शहर को स्थापित किया था और बादमे यह पर बादलगढ़ के किल्ले की रचना की थी। बादमे सिकंदर ने 1506 ई. में आगरा शहर को अपनी राजधानी घोषित किया। बादमे सिकंदर ने ग्वालिया पर हमला किया और वहा से कर की वसूली की लेकिन सल्तनत में उसको कर नहीं मिल पाया था।

ग्वालिया के समृद्धि के लिए सिकंदर ने वहा वाणिज्य और कृषि करने हेतु ध्यान दिया और विकास के लिए कदम उठाये। सिकंदर ने कृषि उत्पादन को आगे बढ़ा ने हेतु अनाज से जकात नाम का कर हटाया था। ग्वालिया के देख रेख और समृद्धि हेतु सिकंदर ने राज्य में कानून को कठोर बनाया और कानून व्यवस्था के माध्यम से व्यापारियों को प्रोटेक्शन दिया। बादमे सिकंदर ने जमीनों का मापन करवाया और इसके लिए गज-ए-सिकंदरी का 30 इंच का मापन बनाया था। इसके बाद सिकंदर लोदी ने शिक्षा को आगे बढ़ा ने हेतु उसके भी कई कदम उठाये थे, सिकंदर लोदी ने मदरसों को राजकीय देख-भाल में लिया और गैर धार्मिक शिक्षा भी प्रदान की।

कहा जाता है, की सिकंदर लोदी धार्मिक रूप से कट्टर इन्सान था। सिकंदर लोदी ने अपने अभियान के कारन चंबेरी, धौलपुर, मंदरेल में कई मंदिरों को नष्ट कर दिया था और वह हिन्दू और मुस्लिम के दोनों धर्मो को सत्य बताकर प्रचार भी कर रहा था। बादमे सिकंदर लोदी ने मोहरम मनाने पर संपूर्ण प्रतिबन्ध लगा दिया था। मुस्लिम महिलाओ को दरगाह दर्शन पर भी प्राबंधी लगा दी थी। सिकंदर फ़ारसी लोगो का पारंगत था और साथ ही गुलरुखी उपनाम से फ़ारसी में लिखता था। सिकंदर के आदेश पर आयुर्वेद का संस्कृत ग्रंथ का फ़ारसी में फरहंग-ए-सिकंदर के नाम से कई अनुवाद किया गया था। उसने फ़ारसी भाषा में लज्जत-ए-सिकंदरी नाम से संगीत पर ग्रंथ लिखा था। कबीर इसका समकालीन यानि वर्णनात्मकता था।

इब्राहीम लोदी – ई. 1517 – 1526 (Ibrahim Lodi – 1517 – 1526)

इब्राहीम लोदी सिकंदर का पुत्र था, इब्राहीम लोदी के समय में अफगानों की समानता फिर से उभर आई थी। इब्राहीम लोदी अफगानों को नियंत्रित नहीं कर पाया था। इसने ग्वालियर के शासक विक्रमजीत को हरा कर ग्वालियर को सल्तनत में मिला लिया था। और विक्रम जित को प्रशासन में शामिल कार लिया फिर शम्साबाद की जागीर दे दी थी।

इब्राहीम लोदी के समय बिहार का अफगान आमिर-दरिया-खां लोहानी स्वतंत्र हो जाता है। इब्राहीम लोदी इसके बाद दरिया खां लोहानी मुहम्मदशाह के नाम से बिहार का एक सवतंत्र शासक बनता हैं। जौनपुर पर जलाल खां मतलब अफगान एवं पंजाब में दौलत खां लोदी की परिस्थिति जैसी हो गई थी। इब्राहीम लोदी के मौसेरे भाई आलम खां ने भी सुल्तान के खिलाफ युद्ध किया और बाद में वह गुजरात की और रवाना हुए।

ई. 1517 से 1518 राणा सांग और इब्राहीम के बिच युद्ध हुआ था और राणा सांग युद्ध में इब्राहीम से पराजित हुआ था। तुजुक-ए-बाबरी के अनुसार दौलत खां लोदी आलम खा और राणा सांगा के दूत बाबर से आगरा पर आक्रमण करने हेतु मिले थे। अप्रैल 1526 ई. इब्राहिम लोदी मुगल शासक बाबर के साथ पानीपत की पहली लड़ाई में लड़ते हुए मारा गया था। युद्ध में मरने वाला भारत का पहला मुस्लिम शासक इब्राहिम लोदी था। इस युद्ध में बाबर ने तोपखाने के साथ तुलुगामा पद्धति का प्रयोग किया था। इसके साथ साथ लोदी वंश और दिल्ली सल्तनत का अंत हो गया।

लोदी वंश के पतन के कारण (Reasons For the Downfall of the Lodi Dynasty)

15 वीं शताब्दी के दौरान तुगलक वंश के खत्म हो जाने के बाद तैमुरों के साथ आक्रमण किया फिर दिल्ली पूरी तरह से कमजोर हो गया था। सैय्यदो के प्रभाव दिन ब दिन कम होते गये और साथ ही लोदी अफगान ही थे जिन्हों ने अपनी समझ-बूझ का प्रयोग किया और धीरे धीरे ही सहीं लेकिन उसने स्थिरता के साथ दिल्ली पर आक्रमण करने के लिए तैयार हुए और उसने दिल्ली पर जित हासिल की। भारत में लोदी वंश की स्थापना तुरंत ही सैय्यद वंश के अलाउदीन आलम के साथ सरहिंद के शासक बहलुल लोदी ने 1451 ई. में की थी।

लोदी साम्राज्य की स्थापना अफगानों की गजली जनजाति ने की थी और यह कहा जाता हे की बहलुल लोदी ने अपनी होशियारी से कार्य किया और बहलुल लोदी ने सैय्यदो की कमजोरी को पहले परखा बादमे कमजोर स्थिति का फ़ायदा उठाते हुए वह दिल्ली पहुच ने से पहले उसका ध्यान पंजाब पर था और उसने दिल्ली से पहले पंजाब को भी हासिल कर लिया था। बहलुल लोदी ने 19 अप्रैल 1451 को “बहलुल शाह गाजी” के खिलाफ साथ ही दिल्ली के सिंहासन से भारत का पूरा नियंत्रण अपने कण्ट्रोल में ले लिया था। इब्राहीम लोदी जब गद्दी पर बैठने के लिए तैयार हुआ उसके साथ साथ शर्की वंश का स्तंभन हो गया था।

सचाई देखि जाए तो भारत में बड़े पैमाने पर अफगान के आने की वजह से लोदी वंश ने अपनी खोई हुई शक्तिया उसे फिर से प्राप्त करने का मोका मिल गया था। बहलुल लोदी ने खुद का साम्राज्य जैसे ग्वालियर, जौनपुर और उत्तरी उत्तर प्रदेश तक सब प्रदेश को अपने काबू में कर लिया था। बहलुल एक माना जाये तो योग्य प्रशासक था, क्योकि उसने लगातार 20 बर्षो तक दिल्ली में अपना हुकम जमाये रखा और तो ओर उसने दिल्ली के आस पास के विस्तारो को भी जित लिया बाद मे उसके आजू बाजू वाले प्रान्तों का ध्यान रखा और उस पर अपनी जित को कायम रखा था। बहलुल लोदी का ई. 1488 में किसी कारण वश उसकी मृत्यु जलाली में हो गई थी। आपको पता होगा की दक्षिण दिल्ली के चिराग दिल्ली में बहलुल की कब्र आज भी मौजूद है।

बहलुल लोदी के दुसरे बेटे का नाम सिकंदर लोदी था और सिकंदर लोदी का अपने बड़े भाई के साथ रवैया कुछ ठीक नहीं था। सिकंदर का अपने बड़े भाई बहलुल लोदी के साथ सत्ता के स्वभाव-विरुद्ध अन-बन लगातार जारी रहता था। सिकंदर लोदी आखिर कार अपने बड़े भाई बहलुल लोदी का 5 जुलाई 1489 को उत्तराधिकार बन जाता है। सिकंदर लोदी को इतहास के एक सच्चा कट्टरपंथी (जिद्दी) सुन्नी के शासक कहा जाता था, और सिकंदर ने मथुरा और नागा बंदरगाह पर भारतीयों मंदिरों का नाश (विध्वंस) करवाया था। सिकंदर ने इस्लाम धर्म को सर्व गुण संपन है ऐसा साबित करने के लिए हिन्दुओ पर जजिया लगाया था। जजिया क्या होता है वो आपको निम्नलिखित दिया गया है।

जजिया – जजिया एक प्रकार का धार्मिक कर है। यह मुस्लिम राज्य में रहने वाले गैर-मुस्लिम लोगों से एकत्र किया जाता है। इस्लामिक राज्य में केवल मुसलमानों को रहने की अनुमति थी और यदि कोई गैर-मुस्लिम उस राज्य में रहना चाहता था, तो उसे जजिया देना होगा। इसे देने के बाद, गैर-मुस्लिम लोग इस्लामिक राज्य में अपने धर्म का पालन कर सकते थे।

इसने 32 अंकों के गाज-ए-सिकंदरी का आरंभ किया जो खेडूतो को सिकंदर द्वारा मापी गयी जमीन को मापने में सहायता करता था।

इतिहास में निम्नलिखित कारणों की वजह से जाना जाता है। (It is known in history because of the following reasons)

  • आगरा नगर की स्थापना 1504 ई. में तथा सुन्दर मकबरों और भवनों का निर्माण।
  • इसने आयात और निर्यात को सुविधाजनक बनाने और अर्थव्यवस्था के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • किसानों को खाद्यान्न पर कर से छूट कारी दी गयी।
  • शिक्षा को बढ़ावा दिया।
  • सिकंदर एक कट्टर सुन्नी शासक था जिसमें धार्मिक सहिष्णुता (बर्दाश्त) का अभाव था।

सिकंदर लोदी ने ग्वालियर के किले को जीतने के लिए करीबन पांच बार कोशिश की लेकिन हर बार उसे राजा मान सिंह का सामना करना पड़ा था। 1517 ई. में सिकंदर की मृत्यु हुई थी। उसके बाद सिकंदर का छोटा बेटा इब्राहीम खान लोदी और इब्राहीम का बड़ा भाई जलाल-उद-दिन के साथ उसका उत्तराधिकारी के लिए युद्ध हुआ और उसमे युद्ध में छोटे भाई इब्राहीम खान लोदी की जित हुई, बादमे इब्राहीम को दिल्ली के सिहासन पर बैठ ने का हक दार हुआ। उसके सिकंदर लोदी के दोनों बेटे यानि बड़े भाई और छोटे भाई के बिच हमेशा युद्ध की स्थिति बनी रहती थी।

लोदी वंश का पतन (Fall of Lodhi Dynasty)

इब्राहिम लोदी के राज्याभिषेक के अंदाजित दस वर्षों के अंदर ही लोदी साम्राज्य को नीचे ला दिया था। मुख्य कारण आपको निम्नलिखित सूचि में दर्शाए हुए है।

  • जलाल-उद-दीन को सहकार देने वाले अमिर अफगानो के बिच असंतोष रहा था। जलाल-उद-दिन अपने छोटे भाई के प्रति घृणा के कारण छोटे भाई इब्राहिम लोदी ने उस पर बहुत अत्याचार किए थे।
  • प्रशासनिक प्रणालियों की विफलता और व्यापार मार्गों के अवरुद्ध होने से साम्राज्य की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई थी।
  • लोदी सेना को राजपूत राजाओं से काफी खतरा भी था उसके बाद राजपूत राजोओ की धमकीया भी लोदी सेना को आती थी और इसके बावजूद राजपूत राजाओ का दिन ब दिन अत्याचार भी बढ़ ने लगा था।
  • खराब आर्थिक स्थिति और उत्तराधिकार के लिए निरंतर युद्ध के कारण खजाने का तेजी से ह्रास हुआ। परिणामस्वरूप साम्राज्य कमजोर हो गया।
  • आंतरिक युद्ध जिसने साम्राज्य को कमजोर कर दिया और लोदी वंश ज़हीर उद दीन मुहम्मद बाबर के हाथों में चला गया, जिसने 1526 में पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहिम लोदी को हराकर भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना की।
  • लोदी वंश का अंदरोनी युद्ध जिसने उसके पुरे साम्राज्य को अंदर से काफी खोखला कर दिया था। ऐसे ही लोदी साम्राज्य जहीर-उद-दिन मोहम्मद बाबर के हाथों में चला गया और इस बाबर ने 1526 ई. में पानीपत के पहले युद्ध में इब्राहीम लोदी को युद्ध में हराकर भारत में एक मुग़ल शासन की स्थापन की थी। 
  • इस प्रकार सैन्य सरकार से लोगों के भरोसे लगातार कम होते गए और बादमे इसके साथ साथ लोदी वंश के विनाश को योगदान दिया। 
  • तैमुर द्वारा लगातार आक्रमण ने भी लोदी सैन्य क्षमता को काफी कमजोर करदिया था। 
  • इब्राहीम लोदी के इसी सख्त नियमों ने उसके कई ख़ुफ़िया दुश्मनों को जन्म दे दिया था। उसमे से उसका मुख्य दुश्मन उसके चाचा था और उसके चाचा एक लाहौर के शासक थे इब्राहीम के चाचा को इब्राहिम द्वारा किये गये अपमान का बदला लेना था और बादमे इब्राहीम को इसका नतीजा भुगत ना पड़ा उसके चाचा ने इब्राहीम को धोका दिया और बाबर के साथ मिलके उनके चाचा ने लोदी साम्राज्य पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया। बाबर ने इसी तरह इब्राहीम को पानीपत की पहली लड़ाई में पराजित कर दिया और ईसि तरह 1526 ई. तक लोदी साम्राज्य का पतन हो गया और इसके वंश का 75 सालो के शासन का एक कडवा अंत हुआ। 
लोदी वंश– 1451-1526
बहलुल लोदी14511489
सिकंदर लोदी14891517
इब्राहिम लोदी15171526
Last Final Word:

दोस्तों यहाँ आपके लिए लोदी वंश से जुडी सभी तरह की जानकारी दी गई है। लोदी वंश के शासन (Rule of The Lodi Dynasty), बहलोल लोदी – ई. 1451 – 1489, सिकंदर लोदी – ई. 1489 – 1517, इब्राहीम लोदी – ई. 1517 – 1526, लोदी वंश के पतन के कारण (Reasons For the Downfall of the Lodi Dynasty), इतिहास में निम्नलिखित कारणों की वजह से जाना जाता है, लोधी वंश का पतन, जैसी सभी तरह जानकारी से आप वाकिफ हो चुके होंगे और उम्मीद है अब आपको आशा करते है की सभी तरह की महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हो गयी होगी

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